वर्षांत समीक्षा 2017- जनजातीय कार्य मंत्रालय
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लघु वन उत्पाद के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य :
साल 2013-14 में इस योजना की शुरुआत 10 लघु वन उत्पादों के लिए
हुई थी जिसमें बाद में 31.10.16 को बदलाव किए गए साथ ही अन्य कई उपादों को
इस श्रेणी में जोड़ा गया और इसे देश भर में लागू करने को स्वीकृति दी गई |
इससे पहले यह योजना पांचवी अनुसूची वाले राज्यों में ही लागू थी |इसी तरह
जिन 10 वस्तुओं पर न्यूनतम समर्थन मूल्य शुरू से था ट्रिफेडने टेरी के
सहयोग से किए गए शोध के बाद इनपर पुनर्विचार किया | साल के बीज, सालकी
पत्तियाँ, बीज के साथ चिरौंजी पौध, रंगीनी लाख और कुसुमी लाख जैसे पांच
उत्पादों के न्यूनतम समर्थन मूल्य नवम्बर 2017 में बढाए गए |
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32 केन्द्रीय मंत्रालय और विभाग ‘ट्राइबल सब प्लान’ की धनराशि को
देख रहे हैं जो जनजातियों की विभिन्न 273 योजनाओं के लिए आबंटित है | सरकार
का ABR ने जनवरी 2016 मेंइस मंत्रालय को यह निर्देश दियाथा कि वह‘ट्राइबल
सब प्लान’ के अंतर्गत दी जाने वाली धनराशि की देखरेख करे जिसे नीति आयोग ने
तैयार किया है | इसकी देखरेख के लिए एक ऑनलाइन सिस्टम भी बने गया है जिसका
लिंक stcmis.nic.in.है| यह ढांचा
जनजातियों के कल्याण की योजनाओं, प्रदर्शन, और परिणाम की भी जांच करता है|
साथ ही क्षेत्र आधारित प्रदर्शन की जांच करता है जिससे जिम्मेदारी का
निर्धारण किया जा सके | इसके लिए एक नोडल ऑफिसर नियुक्त किया गया है
जोमंत्रालय के साथ संपर्क बनाए रहता है | इस पूरे कार्यक्रम को छमाही
समीक्षा के अंतर्गत मंत्रालय और नीति आयोग देखेंगे जिसके आधार पर इसके
प्रदर्शन का आकलन किया जायेगा |
- आदि महोत्सव :
जनजातिकार्य मंत्रालय ने ट्रिफेड (TRIFED) के सहयोग से एक राष्ट्रीय
आदिवासी महोत्सव का आयोजन 16 नवम्बर 2017 से 30 नवम्बर 2017 तक किया | इस
महोत्सव की शुरुआत महान आदिवासी जन नेता और स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा
के 142वें जन्मदिवस पर अखबारोंएवं सोशल मीडिया मेंएक विज्ञापन देकर
श्रद्धांजलि दी गई | आदि महोत्सव का उदघाटन उप-राष्ट्रपति ने 16 नवम्बर के
दिन किया | आदिवासी संस्कृति कला, शिल्प, खानपान और व्यवसाय का यह महोत्सव
दिल्ली में 15 दिन तक लाखों दिल्लीवासियों के बीच मनाया गया | यहाँ आदिवासी
कलाकारों की बेहतरीन शिल्प कला का नज़ारा दिखा | इसमें सुन्दर साड़ियाँ,
ड्रेस मटिरिअल, आभूषण, बांस और सरकंडे से बनी बस्तुओं, पेंटिंग जैसी कई
चीज़ें शामिल थी | 27 राज्यों से आए करीब 800 कलाकार और कारीगरों ने इसमें
भाग लिया और अपने उत्पाद बेचे | इसी बीच आदिबासी नृत्य और लोकसंगीत की भी
कई प्रस्तुतियां दी गईं लेकिन सबसे ज्यादा ध्यान 85 आदिवासी रसोइयों के
हाथों बनी स्वादिष्ट व्यंजनों ने खींचा| इसमें तेलंगाना से बंजारा बिरयानी,
ओडिशा से खोदियार रोटी और चिकन के साथ उत्तर पूर्व के राज्यों से कई
स्वादिष्ट शाकाहारी और मासाहारी व्यंजन शामिल थे |दिल्ली के लोगों ने इन सब
चीज़ों का लुत्फ़ उठाया| 15 दिन के मेले में आदिवासी कारीगरों ने करीब 1.60
करोड़ की बिक्री की जो अब तक का सबसे बड़ा रिकॉर्ड है | इस महोत्सव में कुल
बिक्री 4.10 करोड़ की हुई जिसे लेकर पूरा आदिवासी समूह उत्साहित था |
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